कथावाचक ललित वल्लभ नागार्च ने सुनाएं सती चरित्र रोचक प्रसंग
तिल्दा नेवरा –श्रीमद् भागवत कथा जीवन के सत्य का ज्ञान कराने के साथ ही धर्म और अधर्म के बीच के फर्क को बताती है, उन्होंने कहा कि भगवान कपिलदेव जी ने माता देवहूति को ज्ञान उपदेश दिया बताया कि जीव की गर्भ में क्या स्थिति होती है मां के गर्भ में सातवें माह में भगवान का दर्शन होता है|जब जन्म होता है तब वह चिल्लाता है कि कहां, कहां वह कहां है जिसके मुझे गर्भ में दर्शन हो रहे थे |गर्भ में जीव कहता है कि मैं आप का भजन करूंगा और जन्म के बाद मोह माया में भगवत भजन भूल जाता है.. लेकिन यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा उद्धार सही मायने में तभी होगा जब हम भगवत चरणों में रहेंगे.
दशहरा मैदान नेवरा में श्रीमद् भागवत कथा परिवार के तत्वाधान में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को कथावाचक ललित वल्लभ नागर्च ने श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुए उक्त बाते कही.. कथा में श्रोताओं की भीड़ देखकर श्री नागार्च ने कहा कि धन्य है यह नगरी जहां के लोग भक्ति के रंग में प्रभु के चरणों में कथा का श्रवण करने भारी संख्या में पहुंचे हैं..
कथा व्यास ने सती चरित्र का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो। अपमान होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों न हो। प्रसंगवश सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा था।
भागवत कथा में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए कथा वाचक ने समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जिस प्रकार के कर्म करता है उसी के अनुरूप उसे मृत्यु मिलती है। भगवान ध्रुव के सत्कमोर् की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ध्रुव की साधना,उनके सत्कर्म तथा ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरूप ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ। कथा के दौरान महराज ने बताया कि संसार में जब-जब पाप बढ़ता है, भगवान धरती पर किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं। उन्होंने कहा कि कलयुग में भी मनुष्य सतयुग में भगवान कृष्ण के सिखाए मार्ग का अनुसरण करे तो मनुष्य का जीवन सफल हो सकता है। कथा व्यास ललित वल्लभ नागर्च ने अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया गया ,साथ ही प्रह्लाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाया और बताया कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना बताता है कि प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी है और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की। कथा के दौरान भजनों पर कथा का श्रवण करने पहुंचे श्रोता खासकर महिलाएं नाचने से अपने आप को नहीं रोक पाए.. आयोजक परिवार के संजय अग्रवाल, संतोष अग्रवाल, नीलिम अग्रवाल, रिंकू अग्रवाल,आनद शर्मा ने सपरिवार कथा का श्रवण किया कथा में जिला पंचायत सदस्य अदिति बघमार भी पहुंची थी