Friday, December 27, 2024
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चुनावी चंदे पर चाबुक… इलेक्टोरल बॉन्ड पर बैन के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समझें मतलब, जानिए किस पर क्या होगा असर?

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह योजना नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जारीकर्ता बैंक (एसबीआई) को चुनावी बॉन्ड जारी करने पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक बताया है और इस पॉलिसी को रद्द कर दिया है. कोर्ट का कहना था कि चुनाव बॉन्ड की योजना सूचना के अधिकार (RTI) के खिलाफ है. कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वो 2019 से अब तक की जानकारी तलब करे. बॉन्ड जारी करने वाले एसबीआई को यह जानकारी देनी होगी कि अप्रैल 2019 से लेकर अब तक कितने लोगों ने कितने-कितने रुपए के चुनावी बॉन्ड खरीदे. एसबीआई तीन हफ्ते में यह जानकारी देगी. उसके बाद चुनाव आयोग जनता तक यह जानकारी पहुंचाएगा. आइए जानते हैं कि चुनावी बॉन्ड का मतलब क्या है और अब इसका असर क्या होगा?

दरअसल, चुनावी बॉन्ड को सरकार ने आरटीआई के दायरे से बाहर रखा है. यानी आम जनता आरटीआई के तहत चुनावी बॉन्ड से संबंधित जानकारी नहीं मांग सकती है.  जबकि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, वोटर्स का हक है कि वो पार्टियों के फंड के बारे में जानकारी रखें. चुनाव आयोग को भी इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित जानकारी बेवसाइट पर देनी होगी. सरकार की दलील थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पॉलिटिकल फंडिंग में ब्लैक मनी और गड़बड़झाला रुक सकेगा. जबकि कोर्ट ने कहा, काला धन रोकने के दूसरे रास्ते भी हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई बैंक से मांगी पूरी जानकारी
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। हालांकि पीठ में दो अलग विचार रहे, लेकिन पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एसबीआई बैंक को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड की पूरी जानकारी देने का आदेश दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया।

चुनावी बॉन्ड योजना के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित ईकाई द्वारा खरीदा जा सकता था। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर चुनावी बॉन्ड खरीद सकता था। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 (ए) के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत वोट पाने वाले दल के चुनावी बॉन्ड प्राप्त कर सकते हैं। बॉन्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जा सकता है।

पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने की सुनवाई
कोर्ट ने मामले में 31 अक्तूबर से नियमित सुनवाई शुरू की थी। मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने की। इसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। इस दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से दलीलें दी गईं। कोर्ट ने सभी पक्षों को गंभीरता से सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

क्या है योजना?
इस योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था। इसके मुताबिक, चुनावी बॉण्ड को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई की ओर से खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड के पात्र हैं। शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों। चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा।

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