Thursday, December 26, 2024
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भाई दूज पर ऐसे करें पूजा और आरती, ये रहेगा तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त

भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर उनकी सुख समृद्धि की कामना करती हैं.

तिल्दा नेवरा-भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक भाई दूज हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाती हैं. ऐसे में इस साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्योहार मनाया जाएगा. इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाती हैं और उनके हाथ पर मौली बांधती हैं. इसके साथ ही बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए भी कामना करती हैं.

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भाई दूज के दिन पर जो भाई अपनी बहन से तिलक लगवाता है उसकी कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है. आचार्य रमेश कुमार का कहना है कि, ‘भाई दूज का त्योहार 3 नवंबर को मनाया जाएगा और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 2 नवंबर को रात 8:22 मिनट पर होगी और इस तिथि का समापन 3 नवंबर को रात 11:06 पर होगा. भाई को तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1:10 मिनट से लेकर दोपहर 3:22 तक रहेगा. ऐसे में 2 घंटे 12 मिनट का मुहूर्त तिलक लगाने के लिए काफी शुभ है.’

पंडित संतोष शर्मा  ने कहा कि, ‘बहनों को अपने भाई के तिलक और आरती के लिए थाली तैयार करनी चाहिए. तिलक से पहले चावल के मिश्रण से एक चौकी बनानी चाहिए और उस चौकी पर भाई को बैठाकर शुभ मुहूर्त में उसका तिलक करना चाहिए. तिलक के बाद बहन अपने भाई को सुपारी, पान, बताशे फूल आदि देकर उसकी आरती उतारे. तिलक और आरती होने के बाद भाई भी अपनी बहन को उपहार दे और उसकी रक्षा का वचन दे.

श्री शर्मा का कहना है कि, ‘भाई दूज को लेकर पौराणिक मान्यता के अनुसार यमुना ने अपने भाई यमराज की लंबी उम्र के लिए व्रत किया था और यमराज ने भी इसी दिन अपनी बहन को दर्शन दिए थे. शास्त्रों के अनुसार यमुना अपने भाई से मिलने के लिए काफी व्याकुल थी और द्वितीय तिथि के दिन ही यमराज अपनी बहन से मिलने आए थे. इसलिए यमुना ने अपने भाई की बहुत आव भगत की थी. वहीं, यमराज ने भी प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि अगर इस दिन कोई भी भाई-बहन एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे, तो उन्हें मुक्ति प्राप्त होगी. इसके अलावा यमुना ने अपने भाई से वचन लिया था कि आज के दिन हर भाई को अपनी बहन के घर जाना चाहिए. भाई दूज पर यमराज को प्रसन्न करने के लिए बहनों के द्वारा व्रत भी रखा जाता है. वहीं इसी दिन यमराज के साथ-साथ चित्रगुप्त की भी उपासना की जाती है.’

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