Friday, November 22, 2024
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हर पार्टी ने उठाया था अतीक अहमद के रुतबे का सियासी फायदा, बीजेपी पर भी हैं आरोप

हर पार्टी ने उठाया था अतीक अहमद के रुतबे का सियासी फायदा, बीजेपी पर भी हैं आरोप

माफिया डॉन अतीक अहमद अपने राजनीतिक करियर में पांच बार विधायक और एक बार सांसद रहा था. पूर्वांचल में अल्पसंख्यक वोटों पर अतीक की अच्छी पकड़ थी. शायद यही वजह थी कि उसे राजनीतिक पार्टियों ने अपना मोहरा बनाया. उसने निर्दलीय विधायक के तौर पर राजनीति में कदम रखा था लेकिन बाद में सपा, अपना दल और कांग्रेस ने उसे फायदे के लिए इस्तेमाल किया. बीजेपी पर भी ऐसे ही आरोप लगते हैं.

तीन चुनावों में हैट्रिक मारकर सबका ध्यान खींचा
यह बात उस समय की है जब अतीक पर ‘पावर’ के साथ-साथ ‘पद’ पाने की सनक सवार हो गई थी. इसी का नतीजा था कि 1989 में वह पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा. इस चुनाव में उसे जीत मिली. उसने 25,906 वोट हासिल कर अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी गोपालदास को 8102 वोटों से मात दे दी. फिर 1991 का चुनाव आया. इस चुनाव में भी अतीक ने 36424 वोट पाकर बीजेपी उम्मीदवार रामचंद्र जायसवाल को 15743 वोटों से हरा दिया. इसके बाद 1993 में भी उसने बीजेपी उम्मीदवारतीरथराम कोहली को हरा दिया. उसने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लगातार तीन विधानसभा चुनावों में हैट्रिक मारकर सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया. ऐसा कहा जाता है कि अतीक को सपोर्ट देने के लिए इस दौरान सपा ने चुनाव मैदान में उसके खिलाफ कभी कोईउम्मीदवार नहीं उतारा.

गेस्ट हाउस कांड और सपा से नजदीकी
इसके बाद यूपी में एक ऐसी घटना हुई, जो राजनीति के अध्याय में हमेशा के लिए जुड़ गई. इस घटना को गेस्टकांड नाम दिया गया. सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद 2 जून 1995 में बसपा सुप्रीमो मायावती पर लखनऊ के मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में कुछ लोगों ने हमला कर दिया. इस कांड के मुख्य आरोपियों में एक अतीक अहमद भी था. इसी के बाद मुलायम सिंह यादव ने पहली बार अतीक अहमद के सिर परहाथ रखा. 1996 में समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद को टिकट दे दिया. अतीक ने भी पहली बार किसी पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा.इस चुनाव में उसके खिलाफ बीजेपी के तीरथराम कोहली मैदान में थे लेकिन अतीक ने यह चुनाव जीत लिया था.

अपना दल ने प्रतापगढ़ से अतीक को दिया टिकट

इस दौरान अतीक अहमद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ गई तो उसने सपा से लोकसभा चुनाव में टिकट की मांग की लेकिन बात बनने के बजाए उसका पार्टी से मनमुटाव हो गया. उसने 1999 में सपा का साथ छोड़कर सोने लाल पटेल की पार्टी अपना दल को जॉइन कर लिया. यह वह दौर था जब अतीक को पूर्वांचल में अल्पसंख्यक वोटरों में सेंध लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा था. अपना दल ने उसे प्रतापगढ़ से टिकट दिया लेकिन वह चुनाव हार गया लेकिन अतीक को खुश करने के लिए अपना दल ने उसे यूपी का अध्यक्ष बना दिया लेकिन 2002 में पार्टी ने उसे फिर टिकट दिया लेकिन इस बार वह चुनाव जीत गया. वह सपा उम्मीदवार गोपालदास यादव को हराकर पांचवीं बार विधायक बना था. ऐसा कहा जाता है कि डॉक्टर सोनेलाल ने अतीक को फ्री हैंड दे दिया था. समय के साथ अतीक की पूर्वांचल में होल्ड बढ़ती गई.

फूलपुर से सपा के टिकट पर सांसदी लड़ी और जीती

मुलायम सिंह यादव शायद अतीक अहमद के सपा में होने से पूर्वांचल के मुसलमानों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे, इसलिए इसलिए उन्होंने अतीक की सपा में वापसी करवा ली. पार्टी ने उसे 2004 के लोकसभा चुनाव के लिए फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दे दिया. अतीक यह चुनाव जीत गया. उसे अपनी इलाहाबाद पश्चिम सीट छोड़नी पड़ी. इसके बाद यहां उपचुनाव हुए. इस चुनाव में सपा ने अतीक को खुशकरने के लिए उसके छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया. हालांकि बसपा ने अशरफ के खिलाफ राजू पाल को उतार दिया. राजू पाल यह  चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बन गए. हालांकि साल भर के भीतर ही राजू पाल की हत्या कर दी. इस हत्या में अतीक और उसके छोटे भाई अशरफ को नामजद आरोपी बनाया गया.

पार्टी की छवि बचाने के लिए मुलायम ने पार्टी से निकाला

मई 2007 में मायावती सत्ता में लौट आईं. उन्होंने गेस्ट हाउस कांड के आरोपी अतीक अहमद के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी h.बसपा सरकार में उसके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज कर दिए गए. उसे मोस्ट वॉन्टेड घोषित कर दिया गया. इस वक्त तक अतीक सपा से सांसद था  इस वक्त तक अतीक सपा से सांसद था लेकिन जैसे ही अतीक की छवि को लेकर सपा की किरकिरी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से निकाल दिया. इसके बाद अतीक गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हो गया. उसकी गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया. इसके बाद उसने दिल्ली में सरेंडर कर दिया था.

जब अतीक ने बचाई न्यूक्लियर डील और यूपीए सरकार
अतीक सपा सांसद रहते हुए जेल में बंद था लेकिन एक मौका ऐसा भी आया कि कांग्रेस ने अपनी सरकार बचाने के लिए अतीक का इस्तेमाल किया. राजेश सिंह की पुस्तक – “बाहुबलिस ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स: फ्रॉम बुलेट टू बैलट” में दावा किया गया है कि 2008 अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. उस समय यूपीए सरकार के पास साधारण बहुमत के लिए 44 मतों की कमी थी. मतदान से 48 घंटे पहले सरकार ने फर्लो पर 6 बाहुबलियों को जेल से बाहर निकालकर उनके वोट डलवाए थे. इन बाहुबलियों में एक अतीक अहमद भी था, जिसके वोट से उस समय यूपीए सरकार बच गई थी.

सपा को डेंट पहुंचाने के लिए अतीक को लड़वाया चुनाव
इसके बाद अतीक अहमद जब जेल से बाहर निकला तब अपना दल ने बिना मौका गंवाए को 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ने …का प्रस्ताव दे दिया. कहा जाता है कि तब अतीक को एक दिग्गज नेता ने प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ने को कहा था. इस चुनाव में सपा ने राजा भइया के के रिश्तेदार अक्षय प्रताप सिंह को टिकट दिया था. वहीं कांग्रेस ने रत्ना सिंह को मैदान में उतारा था. इस चुनाव में अतीक के लड़ने से कांग्रेस को फायदा पहुंचा था और सपा को झटका मिला था. यह हार राजा भइया के साख को भी चोट मानी जा रही थी.

बीजेपी की मदद के लिए लड़ा था यह उपचुनाव
इसके बाद देवरिया जेल में बंद अतीक अहमद ने 2018 फूलपुर का उपचुनाव लड़ा. इस बार यह चुनाव उसने निर्दलीय उम्मीदवार.. के तौर पर लड़ा था. इस चुनाव में सपा ने आरोप लगाया कि बीजेपी की मदद करने अतीक यह चुनाव लड़ रहे हैं. इस चुनाव में अतीक के लिए उसकी इस चुनाव में अतीक के लिए उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन और उनके बेटों ने खूब प्रचार किया था. हालांकि बीजेपी प्रत्याशी कौशलेंद्र सिंह पटेल सपा प्रत्याशी नागे..से यह चुनाव 59613 वोटों से हार गए थे. इस चुनाव में अतीक को महज 15855 वोट की मिले थे. .

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