तिल्दा नेवरा,वेंकटेश बालाजी मंदिर गोकर्ण धाम तुलसी तिल्दा में चल रही नौ दिवसीय रामकथा के चौथे दिन शुक्रवार को ताड़का वध एवं अहिल्या उद्धार का प्रसंग कथावाचक स्वामी रामस्वरूपाचार्य ने बताया कि भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब वापस अयोध्या आते हैं तो वहां विश्वामित्र का आगमन होता है। वह राम और लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के लिए अपने साथ ले जाते हैं। रास्ते में ताड़का राक्षसी सोई रहती है तो श्रीराम विश्वामित्र से पूछते हैं कि यह भयानक शरीर वाली कौन है तो विश्वामित्र बताते हैं कि यह ताड़का राक्षसी है जो साधु संत को पकड़ कर खा जाती है। इसलिए इसका वध करो तो श्री राम ताड़का का वध करते हैं।
जय श्री राम के उद्घोष के बीच कथावाचक ने कहा कि असुरों का वध के बाद दोनों भाई गुरु के साथ मिथिला के राजा जनक के यहां धनुष यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे तो, उन्हें रास्ते में एक आश्रम मिला, जहां एक विशाल पत्थर का टुकड़ा पड़ा था। राम ने जब गुरु विश्वामित्र से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह गौतम ऋषि का विश्रामालय है, यह जो पत्थर देख रहे हो उनकी पत्नी अहिल्या है जो, श्राप के कारण पत्थर हो गई है, तब राम ने अहिल्या को तारना चाहा किंतु सूर्यवंशम में स्त्री को पैर से छूना मना था। राम की कृपा हुई तो पवन देव ने अपने झोंकों से प्रभु के चरणों की धूल पत्थर पर डाल दिया। चरण राज पाते ही पत्थर नारी हो गई।
स्वामी ने बताया कि जब विश्वामित्रजी ने कहा- हे राम! अब तुम आश्रम के अंदर जाकर अहिल्या का उद्धार करो। विश्वामित्रजी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर गए। वहां तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज संपूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। वहां पाषाण बनी अहिल्या पर जब भगवान श्रीराम की दृष्टि पड़ी तो अहिल्या का उद्धार हो गया। श्रीराम के पवित्र दर्शन पाकर अहिल्या एक बार फिर सुंदर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किए। अहिल्या का उद्धार हो चुका था और वे श्रीराम के दर्शन पाकर धन्य हो गई थीं। इसके बाद श्रीराम-लक्ष्मण विश्वामित्रजी के साथ प्राग होते हुए उत्तर दिशा (ईशान कोण) में चलकर विदेह नगरी जनकपुर पहुंचे थे।चरण राज पाते ही पत्थर नारी हो गई अहिल्या को प्रकट होते ही वहां ब्रह्मा शंकर समेत अन्य देव पहुंच गए और भगवान राम का जयघोष करने लगे। कथा के अंत में राम जानकी के विवाह की जीवंत झांकी प्रस्तुत की गई इस दौरान श्रोता झूम कर नाचे और भगवान श्री राम जानकी के विवाह की एक दूसरे को बधाई देते रहे