तिल्दा नेवरा -नेवरा के दशहरा मैदान में चल रही कथा भागवत के चौथे दिवस की कथा प्रारंभ करते हुए कथा व्यास ने कहा कि सत्कर्म करते हुए मन वाणी को मधुर रखना चाहिए हमारा जीवन सार्थक होगा… उन्होंने कहा कि जीव मात्र इस संसार रूपी सरोवर में आकर भोग विलास रूपी जल क्रीड़ा में लग जाता है परंतु भूल जाता है कि कल उसे कभी भी पकड़ सकता है| वह कभी किसी को नहीं छोड़ता|
हजारों श्रोताओं ने किया कथा का रसपान
गजेंद्र मोक्ष की कथा को समझाते हुए बताया कि जीव ही तो गजराज है और ग्रह रूपी काल के मुख का ग्रास बना हुआ है यदि उसके श्राप से बचना है तो केवल एक ही साधन है और वह है अति स्वर से भगवान को पुकारना.|. प्रसंग का विस्तार करते हुए उन्होंने बताया किक गजराज का जब मगर ने पैर पकड़ लिया तो उसने अपने बचाव के सभी प्रयास किए अंत में गजराज ने पुष्प लेकर प्रभु का स्मरण किया तो भगवान तुरंत रक्षा करने आ गए| और मगर से कहा मेरे भक्तों का पैर छोड़ दें तब मगर ने कहा मैं कैसे इसका पैर छोड़ दूं इसने आपका पैर पकड़ रखा है, इसलिए मैंने इसका पैर पकड़ रखा है| कहने का तात्पर्य यह है कि सच्चे दिल से भगवान को याद करें तो वे आने में कतई देर नहीं करते हैं |
भजनों पर नाचते रहे श्रद्धालु
श्री नागर्च ने समुद्र मंथन की कथा को विस्तार से सुनाते हुए बताया कि समुद्र मंथन की कथा मन के मंथन की कथा है| जैसे समुद्र मंथन में पहले- पहल जहर निकला वैसे ही मन के मंथन अर्थात भक्ति के मार्ग में जीव को पहले उपवास निंदा रूपी जहर की ही प्राप्ति होती है.. कथा व्यास ने बताया कि मंथन के दौरान 14 रत्नों की प्राप्ति हुई भगवान धनवंतरी जी अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए और देवताओं को अमृत पान कराया मोहिनी भगवान की अमृत पान कर देता बलवान हो गए और देवासुर संग्राम में विजय प्राप्त की..
कथा सुनने आए श्रोताओ से खचाखच भरा पंडाल
उन्होंने वामन अवतार की कथा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मांगने वाला हमेशा छोटा होता है अंततः भगवान को बलि से मांगना था, तो वह भी वामन हो गए और राजा बलि जिसे अपने वैभव का अभिमान था उसे समाप्त करने और बलि का सर्वस्व हरण करने के लिए वामन भगवान उसके द्वार पर पधारे और सब कुछ हरण कर लिया| अंत जीव को धन का कभी अभिमान नहीं करना चाहिए| भगवान अपना मान कम करवा सकते हैं लेकिन अपने भक्तों का मान कम हो यह उन्हें नहीं जचता है.. दुर्वासा ऋषि द्वारा अमरीश को माननीय के प्रयास से क्रोधित होकर दुर्वासा को सुदर्शन चक्र के द्वारा कष्ट उठाना पड़ा परंतु जब दुर्वासा को भगवान नारायण ने कहा कि जाओ अमृत से शमा मांगो तो तुम्हें चक्र के भय से मुक्ति मिलेगी अंततः संसार में भगवान के भक्तों का कभी उपवास न करें..
गंगा “भगवान राम के अवतार की कथा को सुनाते हुए कथा व्यास में चंद्र वंश की कथा को सुनाया गया और बताया कि जब पृथ्वी पर कंस के अत्याचार के कारण गांव, ब्राह्मण, पृथ्वी देवता, दुखी होने लगे तब पृथ्वी गौ का रूप धारण कर प्रभु की शरण में गई और भगवान ने सभी के कष्ट को दूर करने के लिए यदुवंश में देवकी-वासुदेव का माध्यम बना कर प्रगट होने की शब्द रूप में घोषणा की। भाद्रमास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र में रात को बारह बजे कंस के कारागृह में भगवान का प्रागटन होना और रात ही रात में मथुरा से गोकुल नंद भवन में भगवान के आने की कथा को सुनाया गया और जैसे ही नंद भवन में मां जसोदा के लाला के जन्म का समाचार मिला पूरे गोकुल में एक ही स्वर सुनाई दे रहा था नंद घर आनंद भयो जै कन्हैयालाल की इसी शब्द से ही पूरा कथा पंडाल गूंज उठा और सभी ने भगवान के प्रगटिय की बधाइयां बांटी और भजन सुनाए। कथा के दौरान भगवान कृष्ण के प्रागट्य की बधाई के भजनों पर उपस्थित श्रोतानाचते एक दुसरे को बधाई देते रहे।