कर्नाटक चुनाव में अब तक के रुझानों के मुताबिक कांग्रेस सत्ताधारी बीजेपी को करारी शिकस्त देकर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती नजर आ रही है. कर्नाटक
बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना जारी है. चुनाव आयोग ने सभी 224 सीटों के रुझान जारी कर दिए हैं. कांग्रेस बहुमत के आंकड़े 113 सीट को पीछे छोड़ दिया है और 118 निर्वाचन क्षेत्रों में उसके उम्मीदवार आगे चल रहे हैं. भाजपा 68 और जद (एस) 22 विधानसभा क्षेत्रों में सिमटती दिख रही है . जबकिनिर्दलीय 7 सीटों पर निर्दलीय बढ़त बनाए हुए हैं. भाजपा उन छोटे निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करते दिख रही है जो आमतौर पर शहरी हैं और 100 वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्र को कवर करते हैं. ऐसी 33 छोटी सीटों में से बीजेपी 23 पर आगे चल रही है.नवीनतम अपडेट के अनुसार, जिन 75 निर्वाचन क्षेत्रों में 80% से अधिक मतदान दर्ज किया गया था उनमें से कांग्रेस 41 सीटों पर आगे चल रही है.
कल विधायक दल की बैठक.
कांग्रेस विधायक दल की कल बंगलुरु में बैठक रखी गई है. जिसमें जीतने वाले सभी विधायकों को शामिल होने को कहां गया है.. बैठक के लिए एक फाइव स्टार होटल में 50 कमरे बुक किए गए हैं.हैदराबाद में भी रिजॉर्ट बुक होने की खबरें आईं, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने वहां नेताओं को ले जाने की संभावनाओं से इनकार कर दिया।
कर्नाटक चुनाव के रुझानों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ ही हार और जीत के कारणों को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है. कर्नाटक में बीजेपी की करारी हार केपीछे मजबूत चेहरे का न होना और सियासी समीकरण साधने में नाकामी जैसी बड़ी वजहें रही हैं.
बीजेपी की हार के छह कारण
कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना: कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया. वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे. बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना बीजेपी को महंगा पड़ा ,
2- भ्रष्टाचार: बीजेपी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा. कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन’ का एजेंडा सेटकिया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया. करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा..स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली थी. बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी.
3- सियासी समीकरण नहीं साध सकी बीजेपी: कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी बीजेपी साधकर नहीं रख सकी. बीजेपी न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ..जोड़े रख पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी. वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही है.
4- ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया काम: कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे. ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की ..भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं. कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल कोसीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया. बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव भी काम नहीं आ सका.
5- येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा: कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपी ने टिकट काटा तो नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर गए. येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया.
6- सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश सकी: कर्नाटक में बीजेपी की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है.बीजेपी के सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ लोगों में नाराजगी थी. बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में बीजेपी पूरी तरह से असफल रही. कर्नाटक चुनाव में बीजेपी क्यों हारी?
डीके शिवकुमार;सीएम पद के हैं प्रबल दावेदार