तिल्दा नेवरा-तिल्दा स्टेशन चौक बनिया पारा में सुभाष चंद्र केसरवानी के निवास पर चल रही शिव महापुराण कथा के सातवें दिन कथा व्यास आचर्य नरेंद्र व्यास ने भक्तो को पिप्पलाद कथा का श्रवण कराया… उन्होंने को शिव को पिप्पलाद का अवतार बताते हुए कहा कि पिप्पलाद ऋषि का स्मरण करने से शनि पीड़ा दूर हो जाति है. कथा व्यास ने कहा कि शास्त्रों और ग्रंथों में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन किया गया है, परंतु बहुत कम ही लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं, भगवान शिव के इन्हीं अवतारों में से एक अवतार पिप्पलाद अवतार है जिन्होंने कर्मफल दाता शनि देव पर भी प्रहार कर दिया था. जिसके कारण शनिदेव की गति धीमी हो गई थी
.आचर्य ने दधीचि मुनि का प्रसंग सुनते हुए बताया कि दधीचि मुनिशिव जी के सबसे बड़े भक्त थेऔर वह हमेशा शिवजी की आराधना करते रहते थे शिवजी अपने सबसे बड़े भक्त से मिलना चाहते थे शिवजी ने उनसे मिलने के लिए उनके पुत्र रूप में जन्म लिया था परंतु जन्म से पहले ही दधीचि मुनि ने समाधि का रूप लेकर प्राण त्याग दिए थे,,
आचार्य नरेंद्र व्यास ने कथा को विस्तार से सुनाते हुए बताया कि एक बार दैत्यों ने वृत्रासुर की सहायता से इंद्र आदि समस्त देवताओं को पराजित कर दिया था. और सभी देवता दधीचि ऋषि के आश्रम में अपने शस्त्रों को फेंक देते हैं, और अपनी हार स्वीकार कर लेते. इसके बाद इंद्र आदि देवता और देवर्षियों सब मिलकर वृत्रासुर के दुख से दुखी होकर श्री ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचते हैं और ब्रह्मा जी को अपना दुख सुनाते हैं, ब्रह्मा जी कहते हैं यह सब त्वष्टा के कारण हुआ है और त्वष्टा ने ही वृत्रासुर को उत्पन्न किया है, ऐसा प्रश्न करो कि तुम वृत्रासुर का प्रहार कर सको उसके लिए मैं एक उपाय बताता हूं.और महामुनी दधीचि के बारे में बताया की महादेव की आराधना करके उन्होंने अपनी हड्डियों को वज्र जैसा कठोर बना लिया है, भगवान महादेव के वरदान से दधीचि मुनि की जो हड्डिय है ,उससे एक अस्त्र बनाकर वृत्रासुर पर प्रहार किया जाए तो वह जरूर मर सकता है..
बाद में सभी लोग दधीचि के पास आश्रम पहुंचे और दधीचि से अपनी हड्डियां दान करने की बात कही इसे स्वीकारते हुए दधीचि मुन्नी ने समाधि का अनुभव करके परम ब्रह्मा का ध्यान लगाते हुए अपने प्राणों को परम ब्रह्मा परमात्मा में विलीन कर दिया ,,दधीचि जी का बिना अस्थियों का मृत देह देखकर उसकी पत्नी क्रोधित होती है और देवताओं को श्राप देकर चिंता में समाहित होकर पति लोक को प्राप्त करने के लिए उतावली हो जाती है, जैसे ही वह अग्नि में प्रवेश करने जाटी है , तब आकाशवाणी होने लगती है और वहां देवता उपस्थित होते हैं और देवताउससे कहते कि आप ऐसा न करें आपके पेट में दर्द जी मुनि की संतान है आपके पेट में दधीचि मुनि जी की संतान है और मुनि के तेज के कारण आपको अभी चिता में प्रवेश नहीं करना चाहिए
जब उस पुत्र का जन्म हुआ तब मुनि पत्नी ने उस दिव्य स्वरुप धारी पुत्र को देखकर समझ लिया था कि यह रूद्र का अवतार है..l लेकिन जब दधीचि मुनि की पत्नी अपने पति का बलिदान सहन नहीं कर पाई और 3 वर्ष के बच्चे को पीपल के पेड़ के नीचे रखकर अग्नि में बैठकर सती हो गई”