वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
लकीर के ईधर – तू जान से भी प्यारा है
लकीर के उधर – कट्टर दुश्मन हमारा है
{ दिलचस्प – अक्षय कुमार की एक हिट फिल्म का सुपरहिट डायलाॅग है कि ‘जो मैं बोलता हूं वो मैं करता हूं और जो मैं नहीं बोलता हूं वो डेफिनेटली करता हूं’। इन दिनों बड़ी दिलचस्प चर्चा लोगों के बीच होती रही है कि भाजपा जहां चुनाव जीत जाती है वहां सरकार बना लेती है और जहां चुनाव नहीं जीतती वहां डेफिनेटली सरकार बनाती है।
आजकल देश में चुनाव खेल भावना से नहीं होते। चुनाव में तो दुश्मनी जैसा माहौल बन जाता है। वैसे खेल भी कहां खेल भावना से खेले जा रहे हैं। खेलों में भी दुश्मनी समा गयी है। ऐसे में राजनीति को क्या दोष दें… }
लकीर के ईधर दोस्त
लकीर के उधर दुश्मन
इन दिनों जो राजनैतिक परिदृश्य दिख रहा है वो बड़ा मजेदार है। मजा आता है जब दो राजनैतिक दलों के बीच एक जगह तो ‘हम साथ-साथ हैं’ और ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ का भाव दिखता है लेकिन दूसरी जगह ताल ठोक कर ‘आ देखें ज़रा किसमें कितना है दम’ की दुश्मनी दिखने लगती है। वही चेहरे, वहीं उसूल, वही नियम, वही विचार, सबकुछ वही। कहीं कोई फर्क नर्हीं बस दोनों दलों के बीच जगह बदलते ही एकाएक दोस्ती की जगह दुश्मनी दिखने लगती है।
दोस्ती दुश्मनी में बारीक सी रेखा है
मतलब साधने फूल और छुरा
एक ही हाथ में देखा है
इन दोनों भावों के बीच बस एक सामान्य सी सीमा रेखा है। इसे इस तरह समझिये कि दो लोग ट्रेन में एक साथ बैठे थे और भाजपा को गालियां दे रहे थे। एक दूसरे को अपने-अपने टिफिन से खिला (और पिला) रहे थे। आने जाने वालों को दो जिस्म एक जान की तरह लग रहे थे। दोनों की मंजिल, दोनों का ठिकाना एक ही लगता था। सरकार को गरियाते चार-छह स्टेशन निकल गये और बेहद आत्मीयता और भावनाओं के साथ सफर कट रहा था।
फिर एकाएक साथ बैठे दोनों में से एक लपक के सामने की सीट पर आ गया। उसने ईधर-उधर देखा और मुंह बनाना शुरू किया। उसे लगने लगा कि चारों ओर व्यर्थ का हल्ला हो रहा है, गंदगी फैली हुई है। वह अनमना सा होने लगा।
वो जानबूझकर सामने बैठे अपने पुराने हमसफर के प्रति नफरत का भाव दिखाता है। अपने पैरों से उसके रखे टिफिन के उसी थैले को लात मारता है जिसमें से वो थोड़ी देर पहले प्रेम से खाकर डकार ले रहा था। यही नहीं सामने वाला भी उसे खा जाने वाली नजरों से निहारने लगा था। ऐसा प्रदर्शित करता है कि सामने वाला दुनिया का देश का सबसे बेईमान इंसान है। उसकी पार्टी ने देश को बर्बादी के कगार पर ला दिया है और उसे किसी भी कीमत पर जनता की नज़रों में गिराना है।
बड़ा अजीब सा है द्वन्द
राज्य की सीमा पर बदलते संबंघ
लोग चैंके कि भाई एकाएक इन्हें क्या हो गया, अभी तक तो अच्छे खासे थे। प्रेम से बतिया रहे थे। दोनों यात्रियों में दो जिस्म एक जान दिख रही थी। अब अचानक दोनों एक-दूसरे की जान के दुश्मन क्यों हो रहे हैं।तब ये पोल खुलती है कि वो दोनों अलग-अलग राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता हैं और सफर के दौरान पिछले स्टेशन से पहले वे जिस राज्य में थे वहां पर उनकी पार्टियों का आपस में समझौता है। इसलिये दोनों एक ही थाली में खाकर केंद्र को कोस रहे थे। लेकिन उस स्टेशन के निकल जाने के बाद अब वे उस राज्य में प्रवेश कर गये हैं जहां उनकी पार्टियों में खांटी राजनैतिक दुश्मनी है, प्रतिद्वंदिता है। इसलिये दोनों आमने-सामने चुनौती की मुद्रा में खड़े हो गये हैं।
यानि लकीर के ईधर दोस्त, लकीर के उधर दुश्मन। दोनों यात्रियों को और उनके दलों को लगता है कि जनता तो नासमझ है। हम तो अपना उल्लू सीधा करें।
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, ममता की टीएमसी, लालू की पार्टी, अखिलेश की पार्टी, नीतिश की पार्टी अमका की पार्टी, ढिमका की पार्टी, बेपेंदी के ईधर-उधर लुढ़कते दल बड़ी ही बेशर्मी और ढीठता के साथ कहीं गलबहियां करते हैं तो कहीं थुक्का फजीहत पे उतारू हैं।