Friday, December 27, 2024
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Modi 3.0: तीसरे कार्यकाल में पीएम मोदी के सामने यह चुनौतियां, सहयोगियों को लेकर कैसे बढ़ेंगे आगे?

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर कल देर रात तक हलचल थी। पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी काफी व्यस्त थे। देर शाम तक बैठकों का दौर चला। दोनों नेता आज भी व्यस्त हैं। अमित शाह की जेपी नड्डा के साथ व्यस्तता आज संसद के पुराने भवन के केंद्रीय कक्ष में एनडीए का नेता चुने जाने को लेकर भी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एनडीए ने अपना नेता चुन लिया है। प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों का एक होमवर्क रंग लाया। शुक्रवार को एनडीए के प्रमुख सहयोगी दलों ने प्रधानमंत्री में अटूट विश्वास का संदेश दिया। टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू ने प्रधानमंत्री की तारीफ की। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे बड़ा संदेश दिया। खुद को प्रधानमंत्री का हनुमान कहने वाले चिराग पासवान हर मोड पर आगे बढ़-बढक़र संदेश दे रहे हैं। संदेश यही कि रविवार को शपथ ग्रहण के बाद तीसरा कार्यकाल शानदार होगा। भरोसा भी यही कि प्रधानमंत्री को चुनौतियों से निबटना आता है।

पहले बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की। नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनोखी केमिस्ट्री दिखाई। प्रधानमंत्री की पिछली कैबिनेट में उनके सहयोगी ने इस ओर इशारा भी किया। मानो, नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ने के अपने पिछले अपराधों की क्षमा मांग ली हो। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ने जिस तरह से संसदीय दल का नेता चुने जाते समय संदेश दिया है, उससे साफ है कि सब तय है।

मंत्रिमंडल में सहयोगियों को लेकर जारी है विमर्श
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर कल देर रात तक हलचल थी। पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी काफी व्यस्त थे। देर शाम तक बैठकों का दौर चला। दोनों नेता आज भी व्यस्त हैं। अमित शाह की जेपी नड्डा के साथ व्यस्तता आज संसद के पुराने भवन के केंद्रीय कक्ष में एनडीए का नेता चुने जाने को लेकर भी थी। एनडीए के प्रमुख सहयोगियों से लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संपर्क में हैं। अब माना जा रहा है कि जेपी नड्डा और अमित शाह की व्यस्तता प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह, उनकी कैबिनेट में शामिल होने वाले सहयोगियों को लेकर है। नए और पुराने साथियों के नाम पर मंथन, चयन का दौर चल रहा है। सहयोगी दलों के नेताओं से भी नामों की सूची मांग ली गई है। इस बारे में पूछे जाने पर एनडीए के सहयोगी दल के एक नेता ने कहा कि अब समय ही कितना बचा है। अंतिम नामों की सूची प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार से ही बनेगी। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल में इस बार नए चेहरे काफी होंगे। पुराने तमाम मंत्रिमंडल के सहयोगी चुनाव हार गए हैं। चुनाव हारने वाले मंत्रियों में राजीव चंद्रशेखर जैसे एकाध नाम ही नए मंत्रिमंडल में स्थान पा सकते हैं।

शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री जी-7 की बैठक में हिस्सा लेने इटली जाएंगे
9 जून को प्रधानमंत्री मोदी नए कार्यकाल के लिए शपथ लेंगे। 13-15 जून तक जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन इटली में हो रहा है। इटली की प्रधानमंत्री जार्जिया मिलोनी ने पीएम को आमंत्रित किया है और प्रधानमंत्री ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। वहां अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों, जर्मनी की चांसलर समेत अन्य से भेंट होगी। ऐसे में शपथ ग्रहण के बाद प्रधानमंत्री के पास समय कम है। उनकी इटली की प्रस्तावित यात्रा को देखते हुए शीर्ष नेता की व्यस्तता काफी है। इसके बीच में उनके सहयोगियों में कामकाज का बंटवारा समेत अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को पूरा करना है।

क्या रहेंगी प्रधानमंत्री के सामने प्रमुख चुनौती?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले कार्यकाल की शुरुआत में जब भाजपा और एनडीए के नेता चुने गए थे तो उन्होंने संसद के केंद्रीय कक्ष में प्रवेश करने से पहले उसकी सीढ़ियों को चूमा था। इस बार उन्होंने भारतीय संविधान को नमन किया है। लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने संविधान में बदलाव को मुद्दा बनाया था। विपक्षी दल कांग्रेस के पास 99 लोकसभा सदस्य हैं। प्रधानमंत्री के नेता चुने जाने और शपथ ग्रहण के पहले ही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी शेयर बाजार में घोटाला और इस पर जेपीसी की जांच की मांग कर दी है। मीडिया विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने संसद भवन में महात्मा गांधी समेत अन्य महापुरुषों की मूर्ति विस्थापन का मुद्दा उठाया है। आशय यह कि विपक्ष आक्रामक, ऊर्जा से लबरेज, सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाने का संदेश दे रहा है। राहुल गांधी भी कह रहे हैं कि अब उनके दल के पास ताकत आ गई है। प्रधानमंत्री को अगले कार्यकाल में इस चुनौती से निबटना होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार सहयोगी दलों के सहयोग से चलने वाली सरकार चलाएंगे। भाजपा के पास संसद में सरकार चलाने के लिए जरूरी संख्याबल नहीं है। निर्भरता सहयोगी दलों पर रहेगी। भाजपा के पास बहुमत के आंकड़े से 32 सांसद कम हैं। टीडीपी और जद(यू) केवल दो दलों के सांसदों को मिलाकर लोकसभा में 28 होंगे। इसलिए दोनों दलों को एनडीए में वजन रहेगा और प्रधानमंत्री को हमेशा ध्यान में रखना होगा कि सहयोगी दल के बिना नहीं चल सकते। तीसरा दल लोक जनशक्ति पार्टी(राम विलास पासवान) है। उसके पांच सदस्य हैं। इन दलों के नेताओं, मंत्रिमंडल में इनके सदस्यों को भी अहमियत देनी होगी।

केंद्रीय मंत्रिमंडल में गृह, वित्त, रक्षा, विदेश चार प्रमुख मंत्रालय हैं। सहयोगी दल इसमें से किसी विभाग की मांग कर सकते हैं। इसके अलावा कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, रेल, शिक्षा, स्वास्थ्य, वाणिज्य, ऊर्जा, सडक़ एवं परिवहन, दूर संचार, नागरिक उड्डयन जैसे महत्वपूर्ण मलाईदार विभागों के लिए सहयोगी दल दबाव बना सकते हैं। प्रधानमंत्री के सामने इसकी चुनौती खड़ी भी है।

प्रधानमंत्री ने अपने दो कार्यकाल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मंशा के अनुरुप हिन्दुत्व के मुद्दे को धार दी है। उन्होंने अगले 100 दिन के सरकार के कामकाज का एजेंडा तैयार कर लिया है, लेकिन इसे बदलना पड़ सकता है। अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री की पिच कमजोर रही है। तीसरे कार्यकाल में इसकी चुनौती काफी बड़ी है। टीडीपी के नेता चंद्र बाबू नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह विषय महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री को संभलकर चलना पड़ सकता है। गठबंधन की सरकार चलानी पड़ सकती है। कॉमन सिविल कोड, एनआरसी समेत तमाम मुद्दों पर आम सहमति का सामना करना पड़ सकता है।

प्रधानमंत्री को किसान कल्याण और कृषि, ग्रामीण विकास, रोजगार पर विशेष ध्यान देना होगा। उ.प्र., महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार में राजनीतिक-सामाजिक समीकरण की भी चुनौती बढ़ी है। कुछ ही महीने बाद दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड समेत राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। प्रधानमंत्री को इसे भी साधना है। भारतीय सेना में अग्निवीर भर्ती योजना को प्रधानमंत्री ने परिवर्तनकारी बताया था, लेकिन इसको लेकर भारी विरोध हो रहा है। सहयोगी दल भी इसकी समीक्षा का दबाव बना रहे हैं। प्रधानमंत्री को इस तरह के कठोर निर्णय लेने पड़ सकते हैं। इस्राइल-फलस्तीन की धरती पर युद्ध जैसे हालात हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध अभी जारी है। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, व्यापार चुनौती के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में मंहगाई का लगातार दबाव बना हुआ है। अमेरिका, चीन से संबध, यूरोप, यूरेशिया, मध्य एशिया का संतुलन भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में भारत की अर्थ व्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जाने के साथ-साथ तमाम अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से जूझना पड़ सकता है।

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