तिल्दा नेवरा-छठ महापर्व का आज दूसरा दिन है। छठव्रती आज खरना का प्रसाद ग्रहण करेंगी। शाम 05:29 से 07:48 तक शुभ मुहूर्त है। इस साल खरना पूजा मूल नक्षत्र में बन रहा है, जिसे ज्योतिष शास्त्र में काफी शुभ माना गया है। इसमें पूर्वाषाढ़ नक्षत्र के साथ सुकर्मा योग बन रहा है। इस नक्षत्र में खरना पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। स्वास्थ्य लाभ मिलता है। इस शुभ संयोग में पूजा करने से व्रतियों को विशेष फल और आशीर्वाद मिलता है।
ज्योतिषाचार्य संतोष शर्मा ने बताया कि इस बार सुकर्मा योग आध्यात्मिक लाभ, मानसिक शांति और भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त करने में सहायक होगा। सुकर्मा योग में जो भी काम किया जाएगा। वह कार्य को पूर्णता और सफलता की ओर ले जाएगा।
मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। इस नक्षत्र का स्वामी केतु है और राशि के स्वामी देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र मंडल का 20वां नक्षत्र है। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। इसे स्थिरता, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है। इस नक्षत्र में खरना पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और स्वास्थ्य लाभ मिलता
खरना पूजा की सामग्री
खरना पूजा पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला व्रत
खरना पूजा का शुभ मुहूर्त सूर्यास्त के बाद शुरू होगा। इस दिन भक्त सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को सूर्यास्त के समय पूजा करती हैं। इस साल सूर्यास्त का समय 05:01 में है। शाम 05:29 से 07:48 बजे तक शुभ मुहूर्त है।
खरना का खीर शुद्धता का प्रतीक
खरना पूजा में प्रसाद के रूप में गन्ने का रस, गुड़, चावल और दूध से बना हुआ खीर, रोटी और पुए बनाए जाते हैं। इस खीर को शुद्धता और स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है। छठ माता को चढ़ाई जाने वाली खीर साधारण नहीं होती। इसे खास सावधानी और पवित्रता के साथ बनाया जाता है। गेहूं के आटे से बनी रोटी सरलता और सादगी का प्रतीक है। इस दिन इन्हें खास तौर पर प्रसाद में शामिल किया जाता है।
प्रसाद का महत्व यह है कि यह उपवास और संयम का प्रतीक है, जो छठ पर्व की परंपराओं और भक्तों की आस्था को मजबूत करता है। इस दिन का प्रसाद अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे ग्रहण करने से मान्यता है कि भक्त के सभी कष्ट दूर होते हैं। उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है।
मिट्टी का चूल्हा और आम की लकड़ी प्रकृति के करीब
छठ पूजा में प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का जलावन के तौर पर इस्तेमाल कर पकाते हैं। दोनों प्रकृति से सीधे जुड़े हुए हैं। इस वजह से खरना में लोग यूज करते हैं। मिट्टी और लकड़ी प्राकृतिक स्रोत होने के कारण ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करते हैं, जिससे प्रसाद को शुद्ध और पवित्र माना जाता है। मिट्टी में नकारात्मक ऊर्जा को रोकने की क्षमता होती है, जो प्रसाद को और भी पवित्र बनाती है।
छठ पूजा में प्राकृतिक और पारंपरिक साधनों का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह पर्व प्रकृति की पूजा से जुड़ा हुआ है। आम की लकड़ी से बनी धीमी और मध्यम आंच पर प्रसाद पकाने से उसका स्वाद भी गजब का होता है। साथ ही यह छठ पर्व के उस मूल भाव को दर्शाता है, जिसमें हम आधुनिक साधनों से दूर, प्राचीन रीति-रिवाजों के अनुसार प्रकृति के करीब रहकर पूजा करते हैं।
मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी पर प्रसाद पकाना समय लेने वाला काम है, जो भक्तों में धैर्य और तप की भावना को विकसित करता है। छठ पर्व में धैर्य, संयम और श्रद्धा का बहुत महत्व है, और यह प्रक्रिया इन्हीं भावनाओं को प्रकट करती है।