वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
नेस्तनाबूत नारा पचहत्तर पार, पार्टी में मचा हाहाकार,
धुल गई कांग्रेस, खुश है इण्डी, मोदी मैजिक बरकरार
विधानसभा चुनावों में कांग्रेसी नेता पचहत्तर पार का दावा करते थे।
पिछली बार 2018 में 68 सीटों पर शानदार जीते थे तो मनोबल उंचा था। फिर उपचुनावों में भी विजय पताका फहराई तो मनोबल टनों के हिसाब से बढ़ गया। काॅन्फीडेन्स बढ़ा तो एटीट्यूड दिखने लगा। जनता को झिड़का जाने लगा, सार्वजनिक रूप् से मंच से डांटा जाने लगा।
जीत सामने देखकर अकड़ जाते हैं
संदर्भवश दस साल पहले की घटना याद आती है। जलविहार काॅलोनी में एक चैनल के कार्यालय में हम लोग बैठे हुए थे तो कांग्रेस पर झल्लाते हुए हमारे पत्रकार और कैमरामैन आए।
उन्होंने बताया कि बस्तर में कांग्रेस के आगे हो जाने से कांग्रेसी नेताओं का घमण्ड बढ़ गया है और देवेन्द्र नगर में उनके निवास पर जाने पर उनके चैकीदार ने बाहर के गेट पर ही रोक लिया। अंदर नहीं आने दिया।
जब कुछ पत्रकारों ने आवाज लगाई तो दूर से घर के दरवाजे से ही नेताजी
हमसे मुखातिब हुए बिना चैकीदार की ओर देखकर बोले
किसी को आने मत देना और सबको दो बजे के बाद कांग्रेस भवन आने को बोल दो।
जाहिर है कि जब तक विजय के संकेत नहीं मिले थे तो पत्रकारों को सर आंखों पर बिठाते थे और जैसे ही बस्तर में आगे होने की खबर लगी घमण्ड में आ गये। बाहरी दरवाजे से लौटा दिया।
लगातार सफलता ने 75 का सपना दिखाया
तो बात सरकार बनने के बाद एटीट्यूड की हो रही थी…. 2018 के बाद हर मोर्चे पर भूपेश सरकार सफल रही और विपक्ष को लाचार सा बना दिया।
ऐसे में स्वाभाविक ही उन्होंने पचहत्तर पार का नारा उछाल दिया। हालांकि मन में वे भी जानते थे कि ये आंकड़ा लगभग असंभव था। कदाचित् ये भाव रहा होगा कि पचहत्तर बोलेंगे तो जनता 55 तक पहुंचाएगी।
सबसे दिलचस्प बात ये रही कि अपनी साफगोई और निच्छलता के लिये विख्यात कांग्रेसी दिग्गज टीएस सिंहदेव ने साफ कहा था कि पचहत्तर की बात करना यथार्थ नहीं लगता। सरकार बनाने के प्रति कदाचित् वे भी आशान्वित थे।
धाराशायी मंसूबे, बड़े-बड़े दिग्गज डूबे
बेहद ही अप्रत्याशित नतीजे आए। कांग्रेस की सरकार का दावा हर कोई कर रहा था। हमने भी प्रारंभ में यही अंदाजा लगाया था। अंत मे शनिवार की शाम को हमने कहा कि भाजपा की 48 से 56 सीट आ सकती हैं। जिसे हमने 3 तारीख की सुबह गिनती के समय भी रिपीट किया।
और अंत में भाजपा की 55 सीट आई।
ये नतीजे अत्यंत चैंकाने वाले थे। कांग्रेस तो जैसे आकाश से जमीन पर गिरी। आश्चर्य इस बात का हुआ कि कई बड़े दिग्गज नेताओं को हार का स्वाद चखना पड़ा।
विशेष बात ये रही कि मोदी का जादू सौ प्रतिशत बरकरार रहा। जहां भी उनकी सभाएं हुई सभी सीटें भाजपा ने जीतीं।
इससे मोदीजी के नंबर फिर एक बार बढ़ गये। साफ जाहिर है कि कांग्रेसी नेता राहुल गांघी के उसी अनुपात में घट गये। गणित लगाएं तो मोदीजी की सफलता का प्रतिशत 100 रहा और राहुल का 30।
इण्डी पर प्रभाव
एकता का अभाव
ऐसी असफलता का असर ये हुआ कि विपक्ष के गठबंधन में पहले से पड़ी दरार और चैड़ी हो गयी। जो थोड़ा बहुत लिहाज कांग्रेस का हुआ करता था और जो थोड़ा बहुत सम्मान राहुल-सोनिया को मिलता था अब उसमें कमी हो रही है।
अखिलेश यादव तो मध्यप्रदेश में वादा करके भी छह सीटें न देने से कांग्रेस से बेहद खफा हैंे लिहाजा उन्हें तो कांग्रेस की ऐसी ‘गति’ से निश्चित ही आत्मिक सुख मिला और अन्य नेता भी जो राहुल को मजबूत नहीं देखना चाहते थे निश्चिंत हो गये।
क्योंकि राहुल का कद कम होने से उनका कद अपने आप बढ़ जाता है।
इस पर बाद में और डिटेल में बात करेंगे। अभी तो बस ये जान लें कि समाजवादी पार्टी को मध्यप्रदेश में धोखा देकर और फिर तीन प्रदेशो में करारी हार से कांग्रेस इतनी कमजोर हो गयी है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष उसे आगे रखेगा इसमें बेहद संदेह है। इन नतीजों से विपक्ष टूटा है और आगे और टूटेगा।