तिल्दा नेवरा.. दशहरा मैदान में चल रहे भागवत कथा के सातवें दिन श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा. कथावाचक ललित वल्लभ नागर्च ने प्रभु के प्रति इतने प्रेम के लिए धन्यवाद दिया.. सातवें दिन की कथा शुरू होने के 2 घंटे पूर्व 1बजे से ही कथा रसपान करने वालों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी.. दोपहर 2 बजे जब महाराज ललित वल्लभ नागर्च ने व्यास गद्दी
पर आसन ग्रहण किया तब तक भक्तों का समुद्र बन चुका था,, भक्ति और आस्था की लहरें हिलोरे देने लगी थी..
मंगलवार की कथा का शुभारंभ करते हुए श्री नागार्ज ने कृष्ण विवाह के पश्चात भगवान के 16608 युवाओं का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि रुकमणी सत्यभामा आदि 8 पटरानी मुख्य थी भोमासुर राक्षस की कैद से 16100 कन्याओं को मुक्त कराया तब उन कन्याओं ने कहा कि अब हम कहां जाएं हमारे घर वाले हमें स्वीकार नहीं करेंगे जब भगवान ने उसे विवाह किया इस तरह भगवान ने 16 800 विवाह की किए|
प्रसंग को आगे बढाते हुये श्रीहित ललित वल्लभ नागार्च सुभद्रा हरण, अब बाणासुर की पुत्री उषा से अनिरुद्ध जी का विवाह वर्णन, कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय बृजवासियों का मिलन का वर्णन करते हुये श्री सुदामा चरित्र का वर्णन किया और बताया की श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता कभी भूली नही जा सकती, सुदामा एक श्रेष्ठ, जितेनद्रिय, ब्रह्म को जानने वाले थे, लोग उन्हें निर्धन कहते हैं लेकिन सबसे बड़ा धनी वही है जिसके पास श्री कृष्ण नाम का खजाना है, सुदामा जी कृष्ण के मित्र भी थे और भक्त भी,
श्रीहित ललित वल्लभ नागार्च महाराज ने आगे दत्तात्रय के चौबीस गुरुओं का वर्णन करते हुये कलियुग में मनुष्य कैसा आचार व्यवहार करेगा, जीव की अपने धर्म के प्रति निष्ठा रहनी चाहिए, एक अध्याय में विषय अनुक्रमणिका के माध्यम से संपूर्ण भागवत श्रवण कराई और हरिनाम संकीर्तन के साथ कथा को विराम किया।