Friday, December 27, 2024
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हनुमान जी की ऐसी प्रतिमा जिनके पैर की थाह अंग्रेज भी नहीं ले सके

* * विशाल प्रतिमा सवा नौ सौ साल पुरानी है

* * भक्त अपनी मुरादें लेकर, हाजिरी भरने भी आते हैं

गंजबासौदा। राम भक्त महाबली हनुमान की एक प्राचीन प्रतिमा भी शहर की सीमा से सटे ग्राम मुरादपुर में है जिससे द्वापर युग की कई किवदंती यहां भी जुड़ी हुई है। जानकार बताते हैं कि मुरादपुर स्थित महाबली हनुमान की विशाल प्रतिमा सवा नौ सौ साल पुरानी है इस प्रतिमा के पैर की थाह अंग्रेज भी नहीं ले सके। जमीन खोदकर तालाब बन गया, लेकिन पैर का छोर किसी को नहीं मिल पाया है। इसका प्रमाण मंदिर के सामने बना तालाब आज भी मौजूद है।

्रइस प्रतिमा को मुरादें पूरी करने वाली प्रतिमा भी कहा जाने लगा है। मुरादपुर में पवन पुत्र श्री हनुमान ज्योति पुंज के रुप में पीपल के विशाल वृक्ष से प्रकट हुए थे। तब से उसी स्थान पर विराजमान है। कालांतर के चलते पीपल का वृक्ष अब नहीं है। पूर्व यह प्रतिमा एक टीले पर थी। बाद में उसके आसपास चबूतरे का निर्माण किया गया।

वेतबा व्रत पर्वोत्सव समिति के संस्थापक पंडित अवस्थी बताते हैं कि द्वापर में इसी स्थान पर महाबली हनुमान ने पांडव पुत्र भीम का घमंड चूर किया था। पांडव पुत्र भीम अपने भाईयों के साथ वनवास का आखिरी एक साल अज्ञातवास काटने राजा विराट की नगरी में आए थे। इसका उल्लेख ग्रंथों में है। महाबली भीम के शरीर में एक हजार हाथियों के समान बल था। बल पाकर उनको घमंड आ गया था। भगवान श्रीकृष्ण ने महाबली भीम का घमंड तोडऩे के लिए श्री हनुमान को आज्ञा दी। इसी स्थान पर हनुमान ने भीम का घमंड तोड़ा था।

पांडवों ने वनवास का आख्रिरी साल अज्ञात वास के रूप में राजा विराट की राज्य सीमा में निकाला था। द्वापर में इस राज्य को मत्सय देश भी कहा जाता था। इसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। क्योंकि विराट नगरी घने जंगलों से घिरी नदी तट पर बसी थी। नदी के जल में बड़ी बड़ी मछलियां थी। वर्तमान में विराट नगरी के चिन्ह सागर जिले की खुरई तहसील के ग्राम ऐरन में मिले हैं।

सागर के हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए शोध में ऐरन गांव के आसपास ही विराट नगर होने की पुष्टि की गई है। वहां द्वापर युग के अवशेष भी मिले हैं। ग्राम ऐरन विदिशा की सीमा से सटा है। सीधे रास्ते से ग्राम ऐरन से मुरादपुर की दूरी करीब 25 किलोमीटर है। मुस्लिम साम्राज्य के दौरान पांच सौ साल पहले अर्जी लगाने वाले एक जागीरदार रहमत उद्दीन की असहाय बीमारी ठीक होने के बाद उसने इस स्थान का नाम मुरादपुर दिया। भक्त अपनी मुरादें लेकर, हाजिरी भरने भी आते हैं आज भी प्रमाण के रूप में मंदिर के चारों तरफ आंटियां बंधी हुई है।

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