वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
बहुत जल्द ये धंध छंटेगी-जीतने वालों को टिकट बंटेगी
राजनीति का माहौल बदल गया है। कह सकते हैं कि ये बदलाव अवाम के लिये अच्छा और नेता के लिये कठिन साबित हो रहा है। पहले की तरह जनता लकीर की फकीर नहीं रही कि जिसे देते थे उसे ही देंगे वोट।
अब तो देखती परखती है। जो मिलता है भसका लेती है लेकिन वोट गुण-दोष के आधार पर देती है। प्रत्याशी को परखने लगी है। प्रत्याशी से उसे क्या लाभ हो सकता है और कौन ऐसा है जो उनके सुख-दुख में सहज शामिल होता है, ये भी देखता है वोटर।
सहज उपलब्ध और हमेशा तैयार
राजनीति के गुरू तरूण चटर्जी
जनता के सुख-दुख में शामिल होने वाले नेताओं मे एक आदर्श नाम तरूण चटर्जी का लिया जा सकता है। स्व चटर्जी को उनके एरिया के वोटर अपना ही समझते थे। वे बिना हील-हवाले के किसी के काम में भिड़ जाते थे। जहां जिसको बोलना है बोलते थे और काम के प्रति ईमानदार प्रयास करते थे।
तरूण हर दूसरे दिन रैली लेकर कलेक्ट्रेट पहुंच जाते थे। अधिकारियों की नाक में दम कर रखा था। किसी की मजाल थी कि उनका नाम लेकर आॅफिस पहंुचे और अधिकारी उसका काम न करे।
बृजमोहन ने जीत का परचम फहराए रखा
हार की आंधी में जीत का दिया जलाए रखा
परिस्थितियां चाहे अनुकूल हों या प्रतिकूल, भाजपा का एक राजनैतिक सितारा हमेशा चमकता रहा। वो है बृजमोहन अग्रवाल। मोहन भैया के नाम से प्रसिद्ध बृजमोहन अग्रवाल भी व्यवहारकुशलता और काम करने के मामले में टाॅप पर रखे जा सकते हैं।
भाजपा से सहानुभूति रखने वाले या उनके जरा भी परिचित उनके सर उठाकर नाम लेकर उनके हालचाल पूछने के स्टाईल में ‘और… ’ बोलने से ही खुश हो जाते हैं।
फिर काम बोलता है। उन्होंने काम के मामले में कभी किसी वोटर को निराश नहीं किया। इसलिये वे अजंेय योद्धा बने हुए हैं।
ये बात अलग है कि अपने वोटर का खयाल करते हुए वे अन्य किसी के साथ हुए अन्याय को अनदेखा कर देते हंै। उनका वोटर ही उनकी सबसे पहली प्राथमिकता होती है। इसलिये ‘उनका वोटर’ उनसे खुश रहता है।
बृजमोहन अग्रवाल के साथ रहने वाले छोटे-बड़े नेताओं को भी राजनैतिक मुकाम उन्हीं के कारण हासिल है। यदि बृजमोहन का हाथ उनकी पीठ पर न हो तो जनता उन्हे शायद नकार दे।
बदलते माहौल का हुआ आभास
तरूण की राह पे कुलदीप,विकास
जनता की जागरूकता को समझकर और राजनीति में परिवर्तन की नब्ज जानकर तरूण चटर्जी की राह पर चले कुलदीप जुनेजा और विकास उपाध्याय। जिन्होंने जनता से मिलनसारिता और सक्रियता का दामन थामा। आज दोनो ही विधायक हैं। सफल हैं।
रायपुर उत्तर के नेता वर्तमान विधायक कुलदीप जुनेजा को सड़क के किनारे अपने साथियों के साथ खड़े होकर आम जनता की समस्या सुनते कभी भी देखा जा सकता है। वहीं स्कूटर में उनकी सील और लेटरपैड रखा होता है। वहीं निराकरण वहीं नतीजा। ऐसे में जनता क्यों खुश नहीं होगी ?
उनके प्रति़़द्वंदी कुलदीप जुनेजा ने इस बात को बारीकी से समझा और अपनाया जिससे वे सफल हो गये और शायद फिर से रायपुर उत्तर से जीत जाएं। जुनेजा सहज उपलब्ध, काम करने में तत्काल एक्टिव और व्यवहार कुशल हैं। ‘बाद में देखते हैं’ वाला कोई क्लास उनके पास नहीं है। कई भाजपा समर्थक भी उनके द्वारा काम किये जाने से उनसे खुश है।
बताया जाता है कि विकास उपाध्याय भी अपने क्षेत्र में स्थापित हो रहे हैं। इस बार उन्हें फिर से जनता चुन सकती है। कहा जा सकता है कि फिर से सफल होंगे। उन्हे चैलेज करने वाला और कोई नहीं दिखता।
टिकट के वांदे हैं
मिल गयी तो जीत के वांदे
राजेश मूणत ने बेशक तरूण चटर्जी जैसे दिग्गज को हरा कर एक रिकाॅर्ड कायम किया लेकिन कालांतर में वे चुनाव अपने व्यवहार और अपने काम से जीते, ये नहीं कहा जा सकता। बल्कि उनके व्यवहार से तो उनके अपने ही लोग खफा दिखाई देते हैं।
जीवन में आईना दिखाने वाले कम ही होते हैं लेकिन किसी शुभचिन्तक ने यदि आईना दिखाना भी चाहा तो राजेश मूणत ने उसे अपना दुश्मन मान लिया।
कार्यकर्ता बताते हैं कि दिल के साफ हैं और काम भी ठीकठाक किया जनहित में, लेकिन मिलनसार न होने और व्यवहार में गरूर झलकने से जनता ने उन्हें नकार दिया।
तीन बार चुनाव जीतने का कारण वहीे था जो पूरी भाजपा का था और वो था मैनेजमेन्ट। पंद्रह साल तक भाजपा ने शासन अपनी लोकप्रियता से किया ये कहना धोखा देना होगा। वास्तविकता तो ये है कि भाजपा सैटिंग से जीतती रही।
बकौल प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भाजपा को जीत में सहयोग का श्रेय स्व अजीत जोगी को भी जाता है।
न पार्टी को साधा न समाज
दावा नहीं कर सकते आज
ऐसे कई नेता आए जो थोड़े समय के लिये टिमटिमाए फिर नेपथ्य में चले गये। उनकी जीत का कोई आसार नजर नहीं आता। वे चूक गये।एक समय के भाजपा के बेहद व्यवहारकुशल नेता इनायत अली अपनी कार्यशैली और वाकपटुता से सबको प्रभावित कर लेने के कारण रायपुर में बेहद लोकप्रिय रहे। आम धारणा यही है कि पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी के परम मित्र रहे इनायत अली ने श्रीचंद सुंदरानी को मार्गदर्शन दिया।
लेकिन इनायत अली के दौर में जो राजनीति चल रही थी अब वो फिट नहंीं बैठती। तो श्रीचंद सुंदरानी ने जो राह पकड़ी वो अब सफलता की गैरेंटी नहीं रही।
शायद यही कारण है कि सुंदरानी भाजपा के गढ़ रायपुर उत्तर से टिकट पाकर केवल एक ही बार विधायक बन पाए। दूसरी बार जनता ने उन्हें नकार दिया। सुंदरानी बदलती राजनीति की नस नहीं पकड़ पाए। उन्हें सेवा की राह शायद जटिल लगी और वे समाज में उदारता से घुल-मिल नहीं पाए। सुंदरानी जिन्हें निस्संदेह सामाजिक पैमाने के कारण टिकट मिली थी, आगे चलकर न पार्टी को साध पाए न समाज को।
जनता को बांध के रखा है
सत्तू भैया ने ग्रामीण सीट को साध के रखा है
व्यवहार कुशलता में यदि सत्यनारायण शर्मा का नाम नहीं लिया गया तो अन्याय हो जाएगा। शुरू से मीठा बोलने वाले सत्यनारायण शर्मा सक्रिय रहे और विरासत के रूप् मे अपने पुत्र पंकज को भी यही गुण दियंे हैं।
वे खुद भी राजनीति में सफल रहे और अब पंकज भी उसी परम्परा को आगे बढ़ाएंगे ऐसा लगता है क्योंकि सत्यनारायण शर्मा ने भी व्यवहार और सक्रियता से वोटर्स का दिल जीत लिया है।
जनता को अपने नेता से मतलब ज्यादा होता है। राष्ट्रीय मुद्दो में चाहे लोकसभा के लिये वो मोदीजंी को पसंद करे पर स्थानीय स्तर पर जीत का आधार व्यवहार और काम ही बनता है।
तो जिन लोगों को राजनीति में सफल होना है उन्हें तरूण चटर्जी से लेकर पंकज शर्मा तक को फाॅलो करना चाहिये। हवा हवाई और रूड नेताओं के लिये अब गुंजाईश कम ही बची है।