भागवत परिवार तिल्दा के तत्वाधान में दशहरा मैदान नेवरा में चल रही भागवत कथा का दुसरा दिन,,
तिल्दा नेवरा -भागवत परिवार तिल्दा के तत्वाधान में दशहरा मैदान पर चल रही भागवत कथा के दुसरे दिन वृंदावन के रसिक भागवताचार्य श्रीहित ललित वल्लभ नागार्च ने अपनी रसमयी वाणी का रसपान कराते कहा अगर भागवत कथा सुनकर कुछ पाना चाहते हैं, कुछ सीखना चाहते हैं तो कथा में कथा के प्यासे बनकर हृदय को रिक्त रखकर आए तभी कथा हृदय पटल पर उतरेगी.. | उन्होंने कहा प्रभु सत्य और सर्वेक्षण हैं जो सृष्टि की रचना करते हैं,पालन करते हैं और समय-समय पर सहार भी करते हैं | लेकिन आज मानव भगवान की भक्ति छोड़कर विषय वस्तु को भोगने में लगा है | वह सारा ध्यान सांसारिक विषयों को भोगने में खपा देता है,जबकि मानव जीवन का उद्देश्य कृष्ण प्राप्ति के लिए होना चाहिए.कथा वाचक ने गुरवार को कथा में द्रोपति चीर हरण,राजा परीक्षित सुकदेव जन्म सवाद और पांडवो का स्वर्गा रोहण का प्रसंग सुनाया |
उन्होंने बताया की दु:शासन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की चेष्टा की। द्रौपदी ने समस्त कुरुवंशियों के शौर्य, धर्म तथा नीति को ललकारा और श्रीकृष्ण को मन-ही-मन स्मरण कर अपनी लज्जा की रक्षा के लिए प्रार्थना की तो भगवान स्वयं प्रगट हो गए। कथा व्यास ने पांडवों के जीवन में होने वाली श्रीकृष्ण की कृपा को बड़े ही सुंदर ढंग से दर्शाया।
श्री ललित वल्लभ ने सुकदेव परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज वनों में काफी दूर चले गएउनको प्यास लगी, पास में समीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे और बोले ऋषिवर मुझे पानी पिला दो मुझे प्यास लगी है, लेकिन समीक ऋषि समाधि में थे, इसलिए पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि इसने मेरा अपमान किया है मुझे भी इसका अपमान करना चाहिए। उसने पास में से एक मरा हुआ सर्प उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने समीक ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने नदी का जल हाथ में लेकर शाप दे डाला जिसने मेरे पिता का अपमान किया है आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी आएगा और उसे जलाकर भस्म कर देगा।
समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित है और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। देवयोग वश परीक्षित ने आज वही मुकुट पहन रखा था। समीक ऋषि ने यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी कि आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी तुम्हें जलाकर नष्ट कर देगा। यह सुनकर परीक्षित महाराज दुखी नहीं हुए और अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां पर बड़े बड़े ऋषि, मुनि देवता आ पहुंचे और अंत मे व्यास नंदन शुकदेव वहां पर पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़े होकर शुकदेव का स्वागत किया।
शुकदेव इस संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए हैं।शुकदेव का जन्म विचित्र तरीके से हुआ, कहते हैं बारह वर्ष तक मां के गर्भ में शुकदेव जी रहे। एक बार शुकदेव जी पर देवलोक की अप्सरा रंभा आकर्षित हो गई और उनसे प्रणय निवेदन किया। शुकदेव ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। जब वह बहुत कोशिश कर चुकी, तो शुकदेव ने पूछा, आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं। मैं तो उस सार्थक रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक होने लगता है। मैं उस रस को छोडक़र जीवन को निरर्थक बनाना नहीं चाहता।
कथा व्यास ने कहा कि द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्यदेव की उपासना कर अक्षयपात्र की प्राप्ति किया। हमारे पूर्वजों ने सदैव पृथ्वी का पूजन व रक्षण किया। इसके बदले प्रकृति ने मानव का रक्षण किया। भागवत के श्रोता के अंदर जिज्ञासा और श्रद्धा होनी चाहिए। परमात्मा दिखाई नहीं देता है वह हर किसी में बसता है। श्रीमद्भागवत कथा जीवन के सत्य का ज्ञान कराने के साथ ही धर्म और अधर्म के बीच के फर्क को बताती है।कथा श्रवण से सूना जीवन धन्य हो जाता है। श्री नागार्च जी ने कहा श्रीमद्भागवत कथा में जीवन का सार छिपा है। यह प्रेम और करुणा की महत्ता समझाती है।
कथा में दूसरे दिन बड़ी संख्या में महिला-पुरूष कथा सुनने पहुंचे| दोपहर 2 बजे श्रीमद् भागवत कथा का प्रारम्भ होते ही धर्म प्रेमी श्रोताओं का आना शुरू हो गया और धीरे-धीरे पूरा पांडाल भर गया। श्रोताओं ने कथा का भरपूर आनंद लिया।