भगवान ज्ञानी को नहीं बल्कि भक्त को सहजता के साथ दर्शन देते हैं;आचार्य पं.नंदकुमार
तिल्दा नेवरा तिल्दा के ग्राम गैतरा मे आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का गुरुवार को कलश यात्रा के साथ शुभारंभ हुआ। कथा वाचक आचार्य पं.नंदकुमार शर्मा निनवा वाले ने कथा के प्रथम दिन भागवत कथा का शुभारभं.करते कहा कि कलियुग में केवल भगवान का नाम ही आधार है, जो भवसागर से पार लगाते हैं। इसमें एक गूढ़ रहस्यज्ञान है, जो ब्रह्मा एवं तत्वज्ञान का भाव उजागर करते हैं। परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा में साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं। यह कथा बड़े भाग्य से सुनने को मिलती है, इसलिए जब भी समय मिले कथा में सुनाए गए प्रसंगों को सुनकर अपने जीवन में आत्मसात करे, इससे मन को शाति भी मिलेगी और जीवन का कल्याण भी होगा|
आचार्य ने कहा कि केवल ज्ञानी होने से भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती। भगवान ज्ञानी को नहीं बल्कि भक्त को सहजता के साथ दर्शन देते हैं। भगवान को पाने के लिए सरल बनना होता है। जो जितना सरल होता है। भगवान की प्राप्ति भी उसे उतनी ही सरलता से हो जाती है। जब तक मनुष्य किसी भी प्रकार के अंहकार से ग्रस्त रहता है, तब तक उसे प्रभु के दर्शन नहीं होते।. निर्मल मन से ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है. भागवत कथा सुनना और भगवान को अपने मन में बसाने से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आता है। भगवान हमेशा आपने भक्त को पाना चाहता है। जितना भक्त भगवान के बिना अधूरा है उतना ही अधूरा भगवान भी भक्त के बिना है। भगवान ज्ञानी को नही अपितु भक्त को दर्शन देते हैं। और सच्चे मन से ही भगवान प्राप्त होता है। अंहकार से जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता और यह भी बताया कि यह धनसंपदा क्षणभंगुर होती है। इसलिए इस जीवन में परोपकार करों।
उन्होंने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईर्ष्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी सारी भक्ति एक दिखावा ही रह जाएगी। आचार्य शर्मा ने कहा कि कलयुग मे भगवान की कथा और भगवान का नाम ही मनुष्य को भवसागर से पार कर सकता है. इसीलिए भगवान की कथा को अपने जीवन मे उतरना और अमल करना अत्यंत आवश्यक है. कथा से ही मनुष्य जीवन मे बदलाव होता है.
उन्होंने कहा मानव जीवन प्राप्त होने के बाद जब कभी सत्संग का अवसर मिले तो समय निकाल कर अवश्य ही सत्संग करना चाहिए. सत्संग से जीवन मे शांति और ईश्वर की कृपा मिलती है. आचार्य जी ने कहा कि भागवत कथा से जीव को धर्म, अर्थ, काम और मरणोपरांत मोक्ष गति प्राप्त होती है. इस कथा से मनुष्य, भूत, प्रेत, किट पतंग, सभी जीव का उद्धार हो जाता है. उन्होंने बताया कि धुंधुकारी जैसा महापापी जो कि मरने के बाद प्रेत योनि को प्राप्त हुआ, भागवत कथा श्रवण मात्र से प्रेत योनि से उनकी मुक्ति हुई और सीधे भवसागर पार उतर गया. आचार्य शर्मा जी ने कहा कि भगवान के चरणों में जितना समय बीत जाए उतना अच्छा है। संसार में एक-एक पल बहुत कीमती है। जो बीत गया उसे जाने दें। इसलिए जीवन को व्यर्थ में बर्बाद नहीं करना चाहिए। भगवान द्वारा प्रदान किए गए जीवन को भगवान के साथ और भगवान के सत्संग में ही व्यतीत करना चाहिए।